The author of the book, Swami Vedananda was a great yogi. He had described the path of spiritual progress through spiritual practice for a long time. This book written by him based on his experiences gives readers a simple understanding of the meaning of the Sandhya Mantras. Along with worldly progress, spiritual progress alone can lead to happiness, peace and prosperity. Praising, praying and worshiping God is called Brahma Yajna. Praise God is the anthem of his infinite qualities. By praising God, God's characteristics like justice, compassion, sin-less, jealous-hatred less, welfare, etc., naturally begins to rise. A man absorbed in worldly pleasures is not stable because he is attracted to subjects here and there. Through the mantras of Sandhya, we generate such thoughts that the mind can move away from different subjects and merge into God, through constant practice the mind and intellect become positive. A person's interest starts in knowledge and devotion. With the influence of theism, a person tends to good works. Worship is called sitting near God. Only by having evening with meaning and emotion through evening mantras can a person achieve the goal of attaining God.
पुस्तक के लेखक स्वामी वेदानन्द महान योगी थे। उन्होंने चिरकाल तक योग साधना द्वारा आध्यात्मिक प्रगति के मार्ग का वरण किया था। अपने अनुभवों के आधार पर स्वामी वेदानन्द जी द्वारा लिखित यह पुस्तक पाठकों को संध्या के मंत्रों के अर्थो का सरल बोध कराती है। सांसारिक उन्नति के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति करने मात्र से ही सुख, शान्ति और समृद्धि का वास होगा। ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करने को ब्रह्म यज्ञ कहते हैं। ईश्वर की स्तुति उनके अनंत गुणों का गान है। ईश्वर के गुणगान से ईश्वर जैसे न्यायकारी, दयालु, पाप-रहित, ईर्ष्या-द्वेष रहित, कल्याणकारी आदि गुणों का स्वभावतः उदय स्तुति करने वाले में होने लगता है। सांसारिक भोगों में लीन मनुष्य का मन स्थिर न होने के कारण इधर-उधर विषयों में आकर्षित होता है। संध्या और उपासना के मन्त्रों द्वारा हम ऐसे विचार उत्पन्न करते हैं कि मन भिन्न-भिन्न विषयों से हटकर ईश्वर में लीन हो जाये निरंतर अभ्यास से मन और बुद्धि सात्विक हो जाती है। व्यक्ति की रुचि ज्ञान और भक्ति में होने लगती है। आस्तिकता के प्रभाव से व्यक्ति उत्तम कार्यो में प्रवृत्त होता है। उपासना ईश्वर के समीप बैठने को कहते हैं। संध्या मन्त्रों के द्वारा अर्थ और भावना के साथ संध्या करने से ही व्यक्ति ईश्वर प्राप्ति के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
Original Book
Print Price : INR 60.00